महाराष्ट्र किसान मार्च व वन अधिकार की प्रासंगिकता

  • 12 मार्च, 2018 को 50,000 से अधिक किसान 165 किलोमीटर की यात्रा तय कर मुंबई पहुंचे थे।
  • इसमें शामिल अधिकांश किसान आदिवासी थे और उनकी अन्य मांगों में एक मांग थी वन अधिकार एक्ट (एफआरए) के माध्यम से उनके भूमि अधिकार (Forest Rights Act-FRA) का क्रियान्वयन।
  • वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) का क्रियान्वयन 2006 में किया गया था जिसका उद्देश्य जनजातियों की भूमि या वन जहां वे निवास करते हैं, उन पर उनके दावों को सुरक्षित रखना है।
  • इसमें लगभग 85.6 मिलियन एकड़ भूमि सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों के द्वारा वन शासन का लोकतांत्रीकरण करने की क्षमता निहित है। इसका मतलब यह भी है कि 1,70,000 गांवों के 200 मिलियन से अधिक वनवासियों का सशक्तीकरण।
  • एफआरए की दो विशिष्ट विशेषताएं हैं;
    1. व्यक्ति या समुदाय का वन भूमि या वन संसाधन पर अधिकार की पुष्टि। इसमें टाइटल राइट्स, उपयोग अधिकार, वन प्रबंधन अधिकार, राहत व विकास अधिकार।
    2. अनुसूचित क्षेत्रों में भूमि के विलगाव से संबंधित निर्णय का अधिकार ग्राम स्तरीय ग्राम सभा को प्रदान की गई है।
      उपर्युक्त के आधार पर ही मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, त्रिपुरा जैसे राज्यों में कॉर्पोरेट या राज्य सरकारों द्वारा भूमि अधिग्रहण का वीटो करने के लिए वनवासियों को प्रेरित किया है।
  • यह संविधान की पांचवीं व छठी अनुसूची से प्राप्त अधिकार को और विस्तार प्रदान करता है।
  • यह संपदा के ‘स्वामी’ (Owner) पर से बल हटाकर न्यायिक निर्णय (Belonging) तक जाता है अर्थात उसे निर्णय का भी अधिकार है कि भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता।
  • इसी के आधार पर ओडिशा के नियामगिरी पहाड़ के डोंगारिया कोंड आदिवासियों (लांजीगढ़ जिला) ने खनन परियोजनाओं का विरोध किया और लड़ाई जीती भी। सभी 10 ग्राम सभाओं ने वेदांता की बाक्साइट खनन परियोजना का वीटो कर दिया।
  • इसी तरह मार्च 2016 में रायगढ़ जिला में पांच आदिवासी गांवों ने कोल इंडिया लिमिटेड व एसईसीएल की परियोजना पर वीटो कर दिया।
    (इंडियन एक्सप्रेस के आलेख पर आधारित)



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