पढ़े-लिखे लोग भी एंटीबायोटिक दवाओं के खतरों से बेखबर

डॉ वैशाली लावेकर
Twitter handle: @VaishaliLavekar

पुणे, 4 जून: एक ताजा सर्वेक्षण से पता चला है कि न केवल अशिक्षित, बल्कि शिक्षित लोगों को भी एंटीबायोटिक दवाओं के सही उपयोग और एंटीबायोटिक प्रतिरोध के खतरों के बारे में पता नहीं है।
पुणे स्थित नेशनल केमिकल लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों ने यह सर्वेक्षण किया है, जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों के 504 लोगों को शामिल किया गया था। लगभग आधे (47 प्रतिशत) लोगों को ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) दवाओं और एंटीबायोटिक दवाओं के बीच अंतर के बारे में पता नहीं था। ओटीसी दवाएं किसी डॉक्टर द्वारा पर्चे पर लिखे निर्देशों के बिना सीधे उपभोक्ता को बेची जाने वाली दवाओं को कहते हैं।
अध्ययन में शामिल एक चौथाई प्रतिभागियों का मानना है कि दवा की खुराक छूट जाने से एंटीबायोटिक प्रतिरोध में कोई फर्क नहीं पड़ता। इसी तरह 10 प्रतिशत लोगों ने यह स्वीकार किया कि वे डॉक्टर से परामर्श लिए बिना खुद ही दवा लेते हैं। शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित इस सर्वेक्षण के नतीजों के मुताबिक, पांच में से एक ने पर्चे के बिना दवाएं खरीदीं या उचित चिकित्सा परीक्षा के बिना डॉक्टर को बुलाकर एंटीबायोटिक कोर्स शुरू किया।
सर्वेक्षण में शामिल पोस्ट ग्रेजुएट लोगों में से आधे से ज्यादा यह नहीं जानते थे कि दवा स्ट्रिप्स पर लाल रेखा क्या संकेत करती है। उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि दवा स्ट्रिप्स पर लाल रेखा होने का तात्पर्य है कि उस दवा को डॉक्टर के परामर्श के बिना नहीं उपयोग करना चाहिए। उन्हें यह भी पता नहीं था कि ऐसी दवाओं को ओवर-द-काउंटर बिक्री की अनुमति नहीं है। कम शिक्षित लोगों की स्थिति इस मामले में अधिक खराब थी। स्नातक कर रहे 71 प्रतिशत और 58.5 प्रतिशत स्नातक लोग दवा स्ट्रिप्स पर ‘लाल रेखा’ के बारे में अनजान थे।
अशिक्षित लोगों में से किसी को भी दवा स्ट्रिप पर लाल रेखा के महत्व के बारे में पता नहीं था और न ही उन्हें बैक्टिरिया से होने वाले संक्रमण में एंटी-बायोटिक दवाओं की भूमिका के बारे में ही जानकारी थी। ओटीसी तथा एंटीबाटोटिक में अंतर कर पाने में भी वे असमर्थ थे। एंटीबायोटिक दवाओं की प्रतिरोधक क्षमता के बारे में भी उन्हें जानकारी नहीं थी। वायरल एवं बैक्टिरियल संक्रमण में अंतर के बारे में अशिक्षित लोगों को नहीं पता था और न ही वे यह जानते थे कि एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग वायरल संक्रमण के उपचार में नहीं किया जाता है।
अत्यधिक एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग और डॉक्टर द्वारा बतायी गई दवा का सेवन नियमित न करने से रोगाणुओं में जैव प्रतिरोधी दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने लगती है और उन पर दवा का असर कम हो जाता है। हालांकि, ज्यादातर लोग थोड़ा बेहतर स्वास्थ्य होने पर नियमित दवा लेना छोड़ देते हैं या फिर पूरी तरह बंद कर देते हैं, जो सेहत के लिए ठीक नहीं है।
अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि शिक्षित लोग एंटीबायोटिक दवाओं का सबसे अधिक उपयोग करते हैं। खुद दवा लेने की प्रवृत्ति भी इस वर्ग के लोगों में अधिक देखी गई है।
अध्ययनकर्ताओं में शामिल डॉ रघुनाथन ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “सर्वेक्षण के नतीजे स्पष्ट करते हैं लोगों को एंटीबायोटिक दवाओं, उसके निपटारे और बिना सोचे-समझे उन दवाओं के उपयोग के बारे में शिक्षित किया जाना जरूरी है।” शैक्षणिक और जन जागरूकता कार्यक्रमों के प्रसार के साथ-साथ एंटीबायोटिक नियंत्रण नीतियों को बेहतर ढंग से लागू करने की आवश्यकता है, जो चिकित्सकीय पर्चे के बिना दवाओं की उपलब्धता को प्रतिबंधित करने में मददगार हो सकती हैं।” अध्ययनकर्ताओं में अनु रघुनाथन के अलावा डॉ दीपनविता बनर्जी भी शामिल थी। (इंडिया साइंस वायर)
भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र

Twitter handle: @VaishaliLavekar

(इंडिया साइंस वायर)

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *