हिम तेंदुओं के संरक्षण में मदगार हो सकती है सामुदायिक भागीदारी

  • एस. सुरेश रमणन (Twitter handle: @sureshramanan01)

जम्मू, 8 मार्च (इंडिया साइंस वायर): हिम तेंदुओं के संरक्षण में स्थानीय समुदायों को शामिल करना और उनकी आजीविका सुनिश्चित करना एक बेहतर रणनीति हो सकती है। भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में यह बात उभरकर आयी है।

हिम तेंदुओं के प्रमुख आवास स्थल लद्दाख में यह अध्ययन किया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि स्थानीय लोगों को यदि इस जीव के संरक्षण के महत्व का अहसास दिलाया जाए और हिम तेंदुओं द्वारा पशुओं के शिकार से होने वाले नुकसान की भरपाई कर दी जाए, तो हिम तेंदुओं को बदले की भावना से मारने की घटनाओं पर लगाम लगायी जा सकती है।

कैमरा ट्रैप से ली गई हिम तेंदुए की तस्वीर

हिम तेंदुए अल्पाइन पारिस्थितिकी तंत्र में पाए जाने वाले प्रमुख शिकारी जीव होते हैं। एशियाई जंगली बकरा आइबेक्स, पर्वतीय तिब्बती भेड़, लद्दाख की उरियल भेड़, चिरु मृग, तिब्बती बकरी ताकिन, सीरोबकरी और कस्तूरी मृग को बचाने के लिए हिम तेंदुए का संरक्षण महत्वपूर्ण हो सकता है। इन जानवरों की घटती आबादी और हिमतेंदुओं की खाल के लिए किए जाने वाले अवैध शिकार से इनकी संख्या कम हो रही है।

गांवों में हिमतेंदुए द्वारा पालतू जानवरों को शिकार बनाने पर बदले की भावना से ग्रामीण उसे मार डालते हैं। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972में हिम तेंदुए की रक्षा का प्रावधान तो है, लेकिन इसके आवास और संरक्षण के लिए दीर्घकालिक रणनीति में स्थानीय लोगों की भागीदारी से संबंधित निश्चित जानकारी नहीं है।

क्षेत्रीय अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं की टीम

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने हिमतेंदुओं के अनुकूल आवास क्षेत्रों की पहचान करने के लिए प्रत्यक्ष और कैमरा आधारित प्रेक्षणों के साथ-साथ मैक्सएंट नामक प्रजाति वितरण मॉडल का उपयोग किया है।हिम तेंदुए की मौजूदगी और अनुपस्थिति के आंकड़ों की तुलना अध्ययन क्षेत्र में छह मापदंडों जैसे ऊंचाई, स्वरूप, ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र, पानी से दूरी, भूमि कवर और शिकार हेतु आवासीय अनुकूलता के साथ की गई है, जिससे संभावित क्षेत्र का परिसीमन हो सके।

इन मापदंडों में ऊंचाई को सबसे महत्वपूर्ण कारकपाया गया है।इसके बाद भू-भाग का ऊबड़-खाबड़ होना और वहां की भूमि भी काफी मायने रखती है। हिम तेंदुओं केरहने केअनुकूल आवास में 2,800से 4,600मीटर की ऊंचाई और 450से 1,800मीटर के ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र हो सकते हैं।लद्दाखमें लगभग 12 प्रतिशतक्षेत्र हिम तेंदुओं के रहने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया है।

इस अध्ययन में हिमतेंदुओं द्वारा मारे जाने वाले स्थानीय पालतू पशुओं और वहां आने वाले पर्यटकों की संख्या संबंधी आंकड़ेस्नो लेपर्ड कन्जर्वेंसी इंडिया ट्रस्टऔर पैंथेरा फाउंडेशन से प्राप्त किए गए हैं। ये दोनों ही गतिविधियां हिमतेंदुओं के 60 प्रतिशत से अधिक अनुमानित आवास क्षेत्रों में होती हैं।

हिम तेंदुए के आवास के आसपास के गांवों में स्थानीय लोगों के साथ मिलकरहोम-स्टेपर्यटन को सुविधाजनक बनाने का काम शुरू किया गया है। 40से अधिक गांवों में 200से अधिक घरों को पर्यटकों के रहने के लिए तैयार करने में सहयोग दियाजा रहा है।इससे लगभग 90 प्रतिशतआय सीधे स्थानीय परिवारों को हो रही है,जबकि शेष राशि का उपयोग वृक्षारोपण, सांस्कृतिक स्थलों के रखरखाव, कचरा प्रबंधन जैसी गतिविधियों के लिए किया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है किआवासीय पर्यटन से होने वाली आय से हिम तेंदुओं के हमलेसे पालतू पशुओं के नुकसान की भरपाई भी हो सकती है।

क्षेत्रीय आंकड़े एकत्रित करते हुए डॉ. त्सेवांग नमगेल

स्नो लेपर्ड कन्जर्वेंसी इंडिया ट्रस्टके निदेशक डॉ. त्सेवांग नमगेल ने बताया कि हिम तेंदुए या किसी अन्य वन्यजीव के संरक्षण के लिए स्थानीय लोग महत्वपूर्ण कड़ी होते हैं। होम-स्टे पर्यटन शुरू करने से पहले अपनेपालतू पशुओंके मारे जाने से आक्रोशित किसान हिम तेंदुओं को मार डालते थे। लेकिन, अब परियोजना क्षेत्र में इस तरह के बदले की प्रतिक्रिया बंद हो गई हैं।

त्सेवांग नमगेल के अलावा शोधकर्ताओं में सोफी एम. वॉट्स, थॉमस एम. मैक्कार्थी (पेंथेरा, न्यूयॉर्क) शामिल थे। यह अध्ययन प्लॉसवन जर्नल में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)

भाषांतरण- शुभ्रता मिश्रा

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