मटर की अधिक पुष्पण वाली प्रजातियां विकसित

  • डॉ अदिति जैन (Twitter handle:@AditiJain1987)

नई दिल्ली, 21 अगस्त : भारतीय भोजन में प्रमुख रूप से शामिल मटर प्रोटीन का एक प्रमुख स्रोत है और दलहन तथा सब्जी के रूप में इसका उपयोग बहुतायत में होता है। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब मटर के पौधे में अधिक फूल लगने वाली प्रजाति विकसित की है, जिसके कारण पौधे पर पैदा होने वाली मटरकी फलियों की संख्या बढ़ सकती है।

मटर की सामान्य किस्मोंके पौधे में प्रति डंठल पर एक या दो फूल होते हैं। वैज्ञानिकों नेमटर की दो अलग-अलग प्रजातियों वीएल-8 और पीसी-531 के संकरण के जरिये मटर की नई किस्म तैयार की है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इस नई प्रजाति के प्रत्येक डंठल पर शुरू में दो फूल लगते हैं, लेकिन चार पीढ़ी के बाद इस प्रजाति के पौधों के प्रत्येक डंठल में दो से अधिक फूल देखे गए हैं, जिससे एक डंठल में अधिक फलियां लगती हैं।

संकरण से प्राप्त पांच किस्मों वीआरपीएम-501, वीआरपीएम-502, वीआरपीएम-503, वीआरपीएम-901-3 और वीआरपीएसईएल-1पी के पौधों के कई डंठलों में तीन फूल भी उत्पन्न हुए हैं। एक अन्य प्रजाति, जिसे वीआरपीएम-901-5 नाम दिया गया है, के डंठलों में पांच फूल तक देखे गए हैं। मटर की इन प्रजातियों के पौधों के आधे से अधिक डंठलों में दो से अधिक फूल लगे पाये गए हैं।

मटर की नई विकसित वीआरपीएम901-5 में एक डंठल में पांच फूल तथा उसकी फलियां

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), वाराणसी, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली और केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल के वैज्ञानिकों द्वारा यह अध्ययन किया गया है। अध्ययन के नतीजे शोध पत्रिका प्लॉस वन में प्रकाशित किए गए हैं।

शोधकर्ताओं में शामिल आईवीआरआई से जुड़े वैज्ञानिक डॉ राकेश के. दुबे ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “एक डंठल पर अधिक पुष्पन वाली नई किस्मों के मटर के पौधों के उत्पादन में सामान्य किस्मों की अपेक्षा उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी देखी गई है।”

दुबे के अनुसार, “इस शोध के नतीजों से शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और उद्योगों को एक आधार मिलेगा, जिससे मटर की बेहतर गुणवत्ता एवं अधिक उत्पादन वाली प्रजातियां विकसित करने में मदद मिल सकती है।एक डंठल में अधिक फलियों के उत्पादन के साथ-साथ जल्दी पैदावार देने वाली किस्मों के विकास संबंधी शोध भविष्य में किए जा सकते हैं।”

वैज्ञानिकों का कहना यह भी है कि बहु-पुष्पन या अधिक फूल आने के बावजूद कई बार डंठल में अधिक फलियां पैदा नहीं हो पाती हैं। वीआरपीएसईएल-1पी एक ऐसी ही नई प्रजाति है, जिसमें बहु-पुष्पन को मोटी डंठल का सहारा नहीं मिल पाता है। इस वजह से फूल अथवा फलियां समय से पहले नष्ट हो जाती हैं और पौधे की उत्पादन क्षमता का भरपूर लाभ नहीं मिल पाता। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि बहु-पुष्पन वाले कई पौधे मध्य से देर तक परिपक्व होते हैं और इन पौधोंके पुष्पन की स्थिति में अधिक तापमान का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

शोधकर्ताओं में डॉ दुबे के अलावा ज्योति देवी, प्रभाकर एम. सिंह, बिजेंद्र एम. सिंह, ज्ञान पी. मिश्रा और सतीश के सांवल शामिल थे।

(इंडिया साइंस वायर)

भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र

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