रोहिंग्या को भारत से वापस भेजने की प्रक्रिया

Photo: Reuters

सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका खारिज होने के पश्चात भारत में अवैध रूप से प्रवेश कर गए सात रोहिंग्या को वापस म्यांमार भेज दिया गया। उन्हें मणिपुर में म्यांमार के पास सीमाई इलाका मोरेह के पास म्यांमार के अधिकारियों को सौपा गया। मणिपुर के मोरेह के पास म्यांमा का नजदीकी शहर तामू है। हालांकि अवैध रूप से भारत में प्रवेश कर गए नागरिकों को वापस भेजने की पहले भी परंपरा रही है परंतु रोहिंग्या मामले में पहली म्यांमार ने उन्हें अपना नागरिक मानते हुए सर्टिफिकेट जारी किया। उपर्युक्त सात रोहिंग्या वर्ष 2012 में अवैध रूप से असम में प्रवेश कर गए थे।

कौन है रोहिंग्या?

  • रोहिंग्या पश्चिम म्यांमार के रखाइन प्रांत के जातीय समुदाय हैं जिनमें अधिकांशतया मुस्लिम हैं। म्यांमार ने इन्हें पूर्ण नागरिकता नहीं दिया है बल्कि इन्हें ‘प्रवासी विदेशी’ या ‘एसोसिएट नागरिक’ का दर्जा दिया गया है। वे बर्मीज भाषा नहीं बोलते वरन् बंगाली बोलते हैं। वर्ष 2012 में उन पर प्रथम बार हमला होने के पश्चात कई रोहिंग्या भाग गए। लगभग 5 लाख रोहिंग्या भागकर सउदी अरब में शरण लिए हुए हैं। लेकिन वर्ष 2017 में म्यांमार सेना द्वारा संगठित हमले किए गए जिससे लाखों रोहिंग्या देश छोड़कर बांग्लादेश में प्रवेश कर गए। वे वहां कोक्स बाजार में शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं।

भारत में रोहिंग्या

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार भारत में लगभग 40,000 रोहिंग्या रह रहे हैं जिनमें 5700 जम्मू-कश्मीर में हैं। इनमें से केवल 16,000 ही संयुक्त राष्ट्र संघ में पंजीकृत हैं। सर्वोच्च न्यायालय में दायर याचिका के अनुसार 12 रोहिंग्या असम में हिरासत में हैं।
    -भारत में घूस आए अवैध प्रवासियों को भारतीय पासपोर्ट एक्ट 1920 तथा फॉरेनर्स एक्ट 1946 के तहत उनके देश निर्वासित कर दिया जाता है। इनकी पहचान करने तथा निर्वासित करने की शक्ति संबंधित राज्य सरकारों के पास है।
    -ऐसे लोगों जब पुलिस हिरासत में लेती है तब स्थानीय अदालत द्वारा पुष्टि होने के बावजूद उन्हें तीन माह से आठ साल जेल की सजा होती है। उनकी जेल की सजा पूरी होने पर उन्हें हिरासत केंद्र ले जाया जाता है जहां उन्हें उनके देश द्वारा स्वीकार करने तक रखा जाता है। राज्य सरकार द्वारा उनके देश को स्वीकार करने हेतु पत्र भेजा जाता है।

रोहिंग्या पर भारत सरकार का रूख

  • भारत सरकार इन अवैध प्रवासियों का इस आधार पर विरोध करती रही है कि भारत के सीमित संसाधन पर वे बोझ पैदा करेंगे, साथ हीे ये भारत के लिए सुरक्षा चिंता पैदा करेंगे।

‘गैर-अवापसी नियम का सिद्धांत

  • कुछ मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं ने इसें ‘गैर-अवापसी नियम का सिद्धांत’ (‘Principle of Non-Refoulement) का मुद्दा माना है जिसमें शरण की मांग करने वाले लोगों उनके देश वापस भेजने की मनाही है जिन्हें उनके देश में जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह या राजनीतिक मत के कारण खतरा हो। इसका उल्लेख वर्ष 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमय में है। चूंकि इस अभिसमय पर भारत ने हस्ताक्षर नहीं किया है इसलिए भारत में इसका क्रियान्वयन नहीं हो सकता।

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *