संविधान का अनुच्छेद 35ए विवाद

  • ‘वी द सिटिजन’ नामक एनजीओ की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 35ए (Article 35A) पर इन दिनों सुनवाई चल रही है। इस याचिका में इसकी वैधानिक को चुनौती दी गई है। याचिका के अनुसार मूल रूप से भारतीय संविधान में इसका प्रावधान नहीं था, और न ही अनुच्छेद 368 के संविधान संशोधन के द्वारा इसे संविधान में शामिल किया गया। भारतीय संसद् में इसे कभी पेश भी नहीं किया गया। दिल्ली स्थित इस एनजीओ के मुताबिक यह प्रावधान ‘भारत की एकता की आत्मा’ के खिलाफ है। चारु वली खन्ना नामक एक अधिवक्ता ने महिलाओं के प्रति भेदभाव के आधार पर इसको चुनौती दी है।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 35ए जम्मू एवं कश्मीर के विधानसभा को राज्य के ‘स्थायी निवासी’ एवं उनके विशिष्ट अधिकारों को और विशेषाधिकारों को परिभाषित करने का अधिकार प्रदान करता है। केवल जम्मू-कश्मीर विधानसभा को ही दो-तिहाई बहुमत से इस स्थायी निवासी की परिभाषा में बदलाव का अधिकार है।
  • भारतीय संविधान में इसकी व्यवस्था वर्ष 1954 के राष्ट्रपति के आदेश के द्वारा की गई थी।
  • ज्ञातव्य है कि 1927 तथा 1932 की अधिसूचनाओं के द्वारा तत्कालीन महाराजा हरि सिंह के नेतृत्व वाले डोगरा शासकों ने राज्य की जनता एवं उसके अधिकारों को परिभाषित किया था। अक्टूबर 1947 में शासक हरि सिंह द्वारा विलय पर हस्ताक्षर के द्वारा जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हुआ। बाद में जब शेख अब्दुल्ला शासक बनें तब उन्होंने जवाहर लाल नेहरू के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किया जिसके फलस्वरूप अनुच्छेद 370 के रूप में जम्मू कश्मीर के लिए विशेष व्यवस्था की गई थी। इन्हीं समझौतों का एक और परिणाम 1954 का राष्ट्रपति आदेश भी था।
  • 1956 में जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान बना जिसमें महाराजा हरि सिंह के राज्य के निवासी संबंधी आदेश को भी इसका हिस्सा बनाया गया।
  • 1954 की व्यवस्था के अनुसार 14 मई 1954 से पहले जो भी लोग राज्य में रह रहे थे, उन्हें राज्य का निवासी माना गया या उसके पश्चात के ऐसे व्यक्ति जिसने उस तिथि से 10 वर्ष पहले अमूर्त संपति खरीदी हो। जम्मू-कश्मीर के सभी प्रवासी, यहां तक कि पाकिस्तान चले गये लोगों को भी राज्य का निवासी माना जाता है। प्रवासी के आश्रितों को दो पीढि़यों तक राज्य का निवासी माना जाता है। स्थानीय निवासी कानून गैर-स्थायी निवासियों को राज्य में स्थायी रूप से बसने, अमूर्त संपति हासिल करने, सरकारी नौकरी प्राप्त करने, छात्रवृत्ति प्राप्त करने या किसी सहायता प्राप्त करने को प्रतिबंधित करता है। यह कानून महिलाओं के साथ भी भेदभाव करता है। यदि राज्य की कोई महिला किसी गैर-निवासी से विवाह कर लेती है तो वह राज्य की निवासी व उसे मिलने वाले सारे अधिकारों को खो देती है। हालांकि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2002 में महिलाओं से संबंधित प्रावधान को गैर-कानूनी करार दिया था। हालांकि उनके बच्चों को उस अधिकार का अधिकारी नहीं माना।

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