किसानों को जहरीले कीटनाशकों से बचा सकती है नयी क्रीम

चित्र: खेत में कीटनाशक का छिड़काव करते हुए तेलंगाना का एक किसान

 

  • दिनेश सी. शर्मा (Twitter handle: @dineshcsharma)

नई दिल्ली, 22 अक्तूबर : खेतों में रसायनों का छिड़काव करते समय अधिकतर किसान कोई सुरक्षात्मक तरीका नहीं अपनाते हैं। इस कारण कीटनाशकों में मौजूद जहरीले पदार्थों के संपर्क में आने के कारण उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है और गंभीर मामलों में मौत तक हो जाती है। भारतीय वैज्ञानिकों ने अब एक ऐसा सुरक्षात्मक जैल तैयार किया है, जो कीटनाशकों के दुष्प्रभाव से किसानों को बचाने में मददगार हो सकता है।

पॉली-ऑक्सिम नामक इस जैल को त्वचा पर लगा सकते हैं, जो कीटनाशकों एवं फफूंदनाशी दवाओं में मौजूद जहरीले रसायनों समेत व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले खतरनाक ऑर्गो फॉस्फोरस यौगिक को निष्क्रिय कर सकता है। इस तरह हानिकारक रसायनों का दुष्प्रभाव मस्तिष्क और फेफड़ों में गहराई तक नहीं पहुंच पाता। चूहों पर किए गए परीक्षणों में इस जैल को प्रभावी पाया गया है और शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि जल्द ही मनुष्यों में भी इसका परीक्षण किया जा सकता है।

कीटनाशकों में मौजूद रसायनों के संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र में मौजूद असिटल्कोलिनेस्टरेस (AChE) एंजाइम प्रभावित होता है। यह एंजाइम न्यूरोमस्क्यूलर कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। त्वचा के जरिये कीटनाशकों के शरीर में प्रवेश करने पर जब इस एंजाइम की कार्यप्रणाली बाधित होती है तो तंत्रिका तंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिससे मनुष्य संज्ञानात्मक रूप से अक्षम हो सकता है और गंभीर मामलों में मौत भी हो सकती है। इस जैल को चूहों पर लगाने के बाद जब उन्हें घातक एमपीटी कीटनाशक के संपर्क में छोड़ा गया तो उनके शरीर में मौजूद AChE एंजाइम के स्तर में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला। इससे वैज्ञानिकों को यकीन हो गया कि यह जैल त्वचा के जरिये शरीर में कीटनाशकों के प्रवेश को रोक सकता है।

शोध टीम के सदस्य (बाएं से दाएं) : केतन थोराट, संदीप चंद्रशेखरप्पा और डॉ. प्रवीण कुमार वेमुला।

इस जैल को बंगलुरु स्थित इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल बायोलॉजी ऐंड रीजनरेटिव मेडिसिन (इनस्टेम) के शोधकर्ताओं ने न्यूक्लियोफिलिक पॉलिमर से बनाया है। वैज्ञानिकों ने अध्ययन के दौरान पाया कि पॉली-ऑक्सीम जैल से उपचारित चूहों पर कीटनाशकों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, जबकि जिन चूहों पर जैल का उपयोग नहीं किया गया था, उन पर जहर का दुष्प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा गया। यह अध्ययन शोध पत्रिका साइंस एडवांसेस में प्रकाशित किया गया है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, “पॉली-ऑक्सीम जैल की एक पतली परत त्वचा पर ऑर्गेनोफॉस्फेट को हाइड्रोलाइज कर सकती है। इसके उपयोग से रक्त और मस्तिष्क, फेफड़े, यकृत तथा दिल जैसे सभी आंतरिक अंगों में AChE के अवरोध को रोका जा सकता है।” अध्यययन में यह भी पाया गया है कि यह जैल आमतौर पर उपयोग होने वाले विभिन्न कीटनाशकों और कवकनाशी रसायनों के खिलाफ अवरोध पैदा करने में प्रभावी हो सकता है। यह जैल कामकाज में शारीरिक बाधा नहीं पहुंचाता और ऑर्गेनोफॉस्फेट को निष्क्रिय करने के लिए प्रमुख घटक के रूप में कार्य करता है। लंबे समय तक पराबैंगनी प्रकाश के संपर्क में रहने और 20-40 डिग्री तापमान के बावजूद ऑक्सीम कई ऑर्गेनोफॉस्फेट अणुओं को एक के बाद एक हाइड्रोलाइज करके तोड़ सकता है।

शोध टीम के एक वरिष्ठ सदस्य डॉ प्रवीण कुमार वेमुला ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “फिलहाल हम जानवरों पर सुरक्षा से जुड़े व्यापक अध्ययन कर रहे हैं, जो चार महीने में पूरा हो जाएगा। इसके बाद मनुष्यों में इस जैल के प्रभाव को दर्शाने के लिए हम एक प्रारंभिक अध्ययन की योजना बना रहे हैं।”

कीटनाशकों के कारण विषाक्तता की समस्या को समझने के लिए, शोधकर्ताओं ने कई किसानों और उनके परिवारों के साथ बातचीत की है। उनमें से किसी के पास सुरक्षात्मक साधनों तक कोई पहुंच नहीं थी। कई किसानों ने बताया कि वे कीटनाशकों का छिड़काव करने के बाद दर्द महसूस करते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, किसानों ने कीटनाशकों के जोखिम को रोकने के लिए कम लागत वाले तरीकों को अपनाने की इच्छा व्यक्त की है।

शोधकर्ताओं में डॉ. वेमुला के अलावा केतन थोराट, सुभाषिनी पांडेय, संदीप चंद्रशेखरप्पा, निकिता वाविल्थोटा, अंकिता ए. हिवले, पूर्ण शाह, स्नेहा श्रीकुमार, शुभांगी उपाध्याय, तेनजिन फुन्त्सोक, मनोहर महतो, किरण के. मुदनाकुदु-नागराजु और ओमप्रकाश शामिल थे।

(इंडिया साइंस वायर)

भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र

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