बचपन से विकसित होने लगता है लैंगिक पूर्वाग्रह

  • शुभ्रता मिश्रा (Twitter handle: @shubhrataravi)

 

वास्को-द-गामा (गोवा), 28 नवम्बर : विज्ञान के क्षेत्र में महिला वैज्ञानिकों की कम भागादारी वैश्विक चुनौती है। एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि महिलाओं के विज्ञान से जुड़ाव संबंधी धारणाएं बचपन से हीबनने लगती हैं।

इस सर्वेक्षण में छात्र एवं छात्राओं दोनों ने माना है कि विज्ञान और गणित जैसे विषयों को चुनने के बजाय ज्यादातर लड़कियां अन्य विषयों को चुनना अधिक पसंद करती हैं। अध्ययन के दौरान 23 प्रतिशत से अधिक लड़कों का मानना था कि बहुत कम लड़कियां गणित और विज्ञान जैसे विषयों में उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहती हैं क्योंकि वे इन विषयों को कठिन मानती हैं। लगभग 12 प्रतिशत लड़कों के मुताबित लड़कियां इन विषयों में कमजोर होती हैं।हालांकि, अधिकतर लड़कियां इन विषयों में कमजोर होने की बात से सहमत नहीं हैं।

उत्तराखंड विज्ञान एवं तकनीकी परिषद के शोधकर्ताओं द्वारा किए गएसर्वेक्षण में स्कूली छात्रों की इस धारणा से जुड़े व्यावहारिक कारणों की पड़ताल की गई है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, विज्ञान और गणित से दूरी बढ़ने के लिए छात्र अभिभावकों को भी जिम्मेदार मानते हैं। करीब 53 प्रतिशत लड़कों और 43 प्रतिशत लड़कियों ने विज्ञान और गणित नहीं पढ़ने देने के लिए माता-पिता को जिम्मेदार ठहराया है।

भारतीय महिला वैज्ञानिकों के योगदान को ध्यान से सुनते स्कूली छात्र एवं छात्राएं

विज्ञान के विभिन्न विषयों के प्रति विद्यार्थियों की अभिरुचि भी अलग-अलग पायी गई है। अध्ययन में शामिल 66 प्रतिशत लड़कों का गणित और 59 प्रतिशत लड़कियों का जीव-विज्ञान की तरफ रुझान अधिक पाया गया है। लड़केऔर लड़कियों की रसायन-विज्ञान के प्रति अभिरुचि में विशेष अंतर नहीं मिला है। हालांकि, लड़कों की अपेक्षा लड़कियांभौतिकी कोकम पसंद करती हैं।

इस सर्वेक्षण में एक चौंकाने वाला तथ्य यह पता चला कि लगभग आधे से अधिक विद्यार्थियों ने विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान के बारे में कभीसोचा तक नहीं था। वहीं, तीन-चौथाई से अधिक छात्र-छात्राओं ने माना कि पहली बार उनसे किसी ने महिला वैज्ञानिकों और उनकी उपलब्धियों के बारे में बातचीत की है। इस सर्वेक्षण से प्रेरित होकर 60 प्रतिशत से अधिक लड़कों और करीब 74 प्रतिशत लड़कियों ने महिला वैज्ञानिकों की उपलब्धियों के बारे में अधिक जानने की इच्छा व्यक्त की है।

 

डॉ कीर्ति जोशी और चारू मल्होत्रा

उत्तराखण्ड के दो सरकारी और दो निजीस्कूलों के आठवीं से दसवीं के 12से16 वर्षीय विद्यार्थियों के बीच प्रश्नावली आधारित यह सर्वेक्षण किया गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार, सरकारी एवं निजी स्कूली छात्रों की प्रतिक्रिया में मतभेद से स्पष्ट है कि विज्ञान में महिलाओं की भूमिका को लेकर छात्रों की धारणा के निर्माण में विद्यालय और समाज दोनों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि मायने रखती है।

विज्ञान संबंधी विषयों में लैंगिक विषमता की रूढ़िवादी प्रवृत्ति स्कूली स्तर से ही विशेष रूप से लड़कों में पनपनी शुरू हो जाती है। निजी स्कूलों में ज्यादातर लड़के और लड़कियां विज्ञान को पुरुष वर्चस्व वाला विषय समझते हैं। वहीं,सरकारी स्कूलों के अधिकतर लड़के और लड़कियां इस पूर्वाग्रह से ग्रस्त दिखे कि लड़कियों के लिए विज्ञान और गणित कठिन विषय होते हैं।निजी स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं की विज्ञान विषयों में अभिरुचि अधिक देखने को मिली है। महिला वैज्ञानिकों के योगदान के बारे में भी निजी स्कूलों के छात्र-छात्राओं को अधिक जानकारी थी।

इस अध्ययन से जुड़ी वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. कीर्ति जोशी ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “पुरुष वर्चस्व वाले वैज्ञानिक समुदाय में महिला वैज्ञानिकों की क्षमताओं और प्रभावशीलता पर संदेह किया जाता रहा है। लेकिन, इन पूर्वाग्रही धारणाओं का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। समाज में विज्ञान को लेकर बने लैंगिक संवेदीकरणजैसे पूर्वाग्रह को मिटाने की पहलस्कूल स्तर से ही शुरू होनी चाहिए क्योंकि इसी उम्र में धारणाएं किसी विचार के रूप में विकसित होने लगती हैं।”

प्रमुख शोधकर्ता चारू मल्होत्रा के मुताबिक “भारतीय महिला वैज्ञानिकों और उनके योगदान के बारे में विद्यार्थियों काअपरिचित होना काफी निराशाजनक है।”

शोधकर्ताओं के अनुसार, स्कूलों में महिला वैज्ञानिकों की उपलब्धियों के बारे में अधिकजानकारियों के माध्यम से जागरूकता लाकर लड़कों के पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है। इसके लिए कक्षाओं में परिचर्चा और परियोजना कार्य के साथ-साथ पाठ्यक्रम में महिला वैज्ञानिकों के योगदान को शामिल करना उपयोगी हो सकता है। यह अध्ययन शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)

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