ब्लैक कार्बन के कारण गंगोत्री ग्लेशियर का पिघलना प्रभावित हो सकता है

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्‍ल्‍यूआईएचजी) के एक अध्ययन के अनुसार, गर्मियों के दौरान गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र में ब्लैक कार्बन की मात्रा 400 गुना बढ़ जाती है। अध्ययन में बताया गया है कि ब्लैक कार्बन की मात्रा में इस मौसमी वृद्धि के पीछे का कारण कृषि अवशेष जलाना और जंगल की आग है। यह ब्लैक कार्बन के प्रकाश-अवशोषित प्रकृति के कारण ग्लेशियर को और अधिक पिघला सकता है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्‍ल्‍यूआईएचजी) के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2016 के लिए गंगोत्री ग्लेशियर के पास चिरबासा स्टेशन में किए गए एक अध्ययन में, इस क्षेत्र में ब्लैक कार्बन (बीसी) की अधिकता की पुष्टि की है, जिसमें गर्मियों के दौरान काफी वृद्धि हुई।

ब्लैक कार्बन की सामयिक अधिकता की जांच से यह पता चला था कि यह सीजन के दौरान कृषि अवशेष जलाने (देश के पश्चिमी भाग में), गर्मियों में जंगल की आग (हिमालयी ढलानों के साथ) से उत्पन्न उत्सर्जन के साथ-साथ कुछ हद तक सर्दियों में लंबी दूरी के वाहनों से उत्‍पन्‍न प्रदूषण, प्रचलित मौसम संबंधी स्थितियों से काफी प्रभावित थी।

समतुल्य ब्लैक कार्बन

समतुल्य ब्लैक कार्बन (Equivalent Black Carbon) एरोसोल अपने हल्के अवशोषित प्रकृति के कारण ग्लोबल वार्मिंग में महत्वपूर्ण योगदान देता है। हिमालयी ग्लेशियर घाटियों जैसे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र में उनकी उपस्थिति गंभीर चिंता का विषय है और इस पर सावधानीपूर्वक निगरानी की आवश्यकता है। हालांकि, ब्‍लैक कार्बन पर आधारभूत डेटा हिमालयी क्षेत्र के अधिकांश क्षेत्रों से शायद ही उपलब्ध हो।

पहली बार, डब्‍ल्‍यूआईएचजी के वैज्ञानिकों की टीम ने वर्ष 2016 के दौरान भारतीय हिमालय में गंगोत्री ग्लेशियर के पास एक अधिक ऊंचाई वाले स्थल चिरबासा (3600 मीटर) पर ईबीसी द्रव्यमान की अधिकता का मापन किया। ईबीसी का मासिक औसत सांद्रता अगस्त में न्यूनतम और मई के महीने में अधिकतम पाई गई। ईबीसी की मौसमी माध्य सांद्रता ने एक प्राचीन हिमनद स्रोत और इलाके में ईबीसी स्रोतों की अनुपस्थिति का संकेत दिया।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान,

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ( Wadia Institute of Himalayan Geology) की स्थापना दिल्ली विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग में एक छोटे से केन्द्र के रुप में हुई. अप्रैल, 1976 में इसे देहरादून में स्थानांतरित कर दिया गया।

वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय का एक स्वायत्तशासी शोध संस्थान है।

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