भारत में दोहरी नकलची सांप प्रजाति की पहली बार खोज

  • आमतौर पर कई जंगली प्रजातियां खुद को शिकार होने से बचने के लिए या शिकार करने के लिए अपना रंग या हाव-भाव बदल देती हैं। इससे जहां जंगलों में खुद का अस्तित्व बचाने में वे सफल होती हैं और साथ में उन्हें शिकार करने में भी आसानी होती है। इसे ही हमें नकलची (स्वांग) जानवर या मिमिक्री एनिमल कहते हैं। कई प्रजातियां शिकार से बचने के लिए अपना रंग बदल लेती हैं या फिर शिकार करने के लिए आसपास के माहौल के अनुरुप शक्ल अख्तियार कर लेती हैं। परंतु कम ही ऐसे जानवर हैं जिनमें मिमिक्री के दोनों लक्षण पाये जाते हैं।
  • लेकिन शोधकर्त्ताओं को पश्चिमी घाट में सांप की एक ऐसी प्रजाति मिली है जो दोहरी नकलची (Dual mimicry) के गुणों से युक्त हैं। सांप की यह प्रजाति है ‘कैलियोफिस बिब्रोनी’ (Calliophis bibroni)।
  • शिकारी जानवर अक्सरहां ऐसे शिकारों के पास जाने से डरते हैं जो जहरीला या खतनाक होते हैं। संभवतः शिकारी जानवर लाल सांपों को जहरीला समझते हैं इसलिए उनके पास ये नहीं जाते। कैलियोफिस बिब्रोनी सांप प्रजाति जब कम उम्र की होती हैं तब शिकारियों से बचने के लिए ‘साइनोमिक्रुरस मैक्लेलांडी’ (Sinomicrurus macclellandi) सांप की तरह लाल रंग व उस पर काली रंग की धारियां विकसित कर लेती हैं। इससे वे बचपन में ही शिकार होने से बच जाती है।।
  • परंतु वयस्क होने पर यही रंग उन पर भारी पड़ सकता है क्योंकि उनके इसी रंग के कारण उनका शिकार भी उनसे दूर हो सकता है। इसलिए वे एक बार फिर से आसपास के माहोल के रंग में खुद को ढ़ाल लेती है ताकि शिकार उनसे दूर न जाये।
  • इस तरह यह सांप प्रजाति दोहरी नकलची की भूमिका में सामने आती है। भारत में दोहरी नकलची वाली सांप प्रजाति पहली बार प्राप्त हुयी है।
  • बातेसियन मिमिक्रीः गैर-जहरीली या गैर-खतरनाक प्रजातियां शिकारियों को वेबकूफ बनाने के लिए जब किसी जहरीले या विषैले शिकारी का स्वरूप ले लेती हैं तो उसे बातेसियन नकलची कहते हैं। वोल्फ स्नेक का करैत का रंग धारण करना इसी का उदाहरण है। ओलिगोडॉन या कुकरी सांप भी इसी श्रेणी में शामिल हैं।

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