GRIIS द्वारा विदेशी प्रजातियों की प्रथम वैश्विक सूची जारी

  • ग्रिस यानी ग्लोबल रजिस्टर ऑफ इनवैसिव स्पेशीज ( Global Register of Introduced and Invasive Species: GRIIS) द्वारा देश वार विदेशी जंतु व पादप प्रजाति की प्रथम वैश्विक सूची जारी की गई है।
  • इस सूची में विश्व के 20 देशों में पायी गयी 6414 विदेशी प्रजातियों की सूची बनायी गयी हैं। ये एसी प्रजातियां हैं जो अपने मूल स्थान से बाहर जाकर वहां के वातावरण में रच-बस गयी हैं।
  • दक्षिण अफ्रीका में 2107 विदेशी एवं हमलावर प्रजातियां पायी गयी जबकि मंगोलिया में इनकी संख्या महज 77 थी।
  • आईयूसीएन ग्रिस के मुताबिक इन 6414 विदेशी प्रजातियों का पांचवां हिस्सा दूसरी स्थानीय प्रजातियों को नुकसान पहुंचा रही हैं।
  • ग्रिस के मुताबिक इनमें कई प्रजातियां दूसरे देशों के न केवल पर्यावरण को हानि पहुंचा रही हैं बल्कि वहां की अर्थव्यवस्था व स्वास्थ्य को भी खतरे में डाल रही हैं। उदाहरण के तौर चूहा, कई द्वीपों में पक्षियों को विलुप्ति के कगार पर पहुंचा सकती हैं।

क्या है GRIIS?

  • इसका विकास आईयूसीएन एसएससी इनवैसिव स्पेशिज स्पेशियलिस्ट ग्रूप (आईएसएसजी) द्वारा 2006 में अवधारणा व प्रोटोटाइप के रूप में किया गया। बाद में जैव विविधता संरक्षण से जुड़े आईची लक्ष्य-9 (जापान) से इसके उद्देश्य को जोड़ दिया गया।
  • आईची लक्ष्य-9 के अनुसार वर्ष 2020 तक आक्रामक विदेशी प्रजातियाें की पहचान कर प्राथमिकता के आधार पर उनका नियंत्रण किया जाये या उन्मूलन किया जाये। साथ ही ऐसे उपाय किये जाये जिससे कि ऐसी प्रजातियां कहीं और नहीं जा सके।

भारत में हमलावर विदेशी प्रजातियां

  • जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने कुछ माह पूर्व भारत में रहने वाली उन प्रजातियों की सूची जारी की थी विदेशी हैं और हमलावर भी। ने विदेशी हमलावर प्राणियों (alien invasive animal species) की सूची बनाई है जिनकी संख्या 157 है।
  • -157 विदेशी हलावार जंतु प्रजातियों में हमलावर माइक्रोब्स प्रजातियां नहीं शामिल हैं।
  • -इन 157 प्रजातियों में 58 जमीन और ताजा जल पर्यावासों में पायी जाती हैं जबकि 99 सागरीय पारितंत्र में पायी जाती हैं।
  • -जिस तरह से पार्थेनियम हिस्तेरोफोरस यानी कपास घास (Parthenium hysterophorus) एवं लंताना कमारा यानी लंताना (Lantana Camara) पादप प्रजातियां कृषि एवं जैव विविधता को नुकसान पहुंचाने के लिए जानी जाती हैं उसी तरह कई हमलावर विदेशी प्राणियां भी जैव विविधता एवं मानव के लिए खतरा साबित हो रही हैं।
  • -विशेषज्ञों के मुताबिक विदेशी प्रजातियां तब आक्रामक हो जाती हैं जब उन्हें अनजाने में या जानबूझकर उनके प्राकृतिक क्षेत्र से बाहर किसी अन्य परायी क्षेत्र में लायी जाती है। ये विदेशी प्रजातियां स्थानीय प्रजातियों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर देती हैं और पारिस्थितकीय संतुलन को अस्थिर कर देती हैं।
  • जमीन एवं ताजा जल में पायी जाने वाली 58 हमलावार विदेशी जंतु प्रजातियों में 31 संधिपाद (आर्थोपॉड), 19 मत्स्य, 3 मोलस्का एवं पक्षी, एक सरीसृप एवं दो स्तनधारी हैं।
  • जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के निदेशक डॉ- कैलाश चंद्रा ने पाराकोकस मार्गीनेटस (paracoccus marginatus-Papaya Mealy Bug) का उदाहरण दिया जो मेक्सिको एवं मध्य अमेरिका की प्रजाति हैं परंतु ऐसा माना जाता है कि पश्चिम बंगाल, असम एवं तमिलनाडु में पपीता के फलों को बड़े पैमाने पर बबार्द करने के लिए यह उत्तरदायी है।
  • फेनाकोकस सोलेनोप्सिस (Phenacoccus solenopsis-Cotton Mealybug) उत्तरी अमेरिका मूल की प्रजाति है परंतु दक्कन में कपास के पौधों को इसने क्षति पहुंचायी है।
  • हमलावर विदेशी मत्स्य प्रजातियों में प्टेरीगोप्लिचथाइस पारदालिस (Pterygoplichthys pardalis-Axamon sailfin catfish) कोलकाता की आद्रभूमि में मछली की आबादी को कम कर रही है।
  • अचातिना फुलिका (Achatina fulica-African apple snail) को सभी विदेशी हमलावार जंतुओं में सर्वाधिक हमलावर माना जाता है। यह एक मोलस्का है और इसकी मौजूदगी का प्रथम प्रमाण अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह में मिला था। परंतु आज यह देश के सभी हिस्सों देखा जा सकता है कई स्थानीय प्रजातियों के आवास को यह नष्ट कर रही है।
  • विदेशी हमलावर सागरीय जंतुओं में असिडिया सर्वाधिक (31) हैं। इसके पश्चात आर्थोपॉड (26), एनेलिडो (16), स्निडारियन (11), ब्रायोजोआंस (6), मोलस्का (5), स्तेनोफोरा (3) एवं एंटोप्रोक्टा (1) है।
  • तुबास्त्रिया कोकिनिया (Tubstrea coccinea-Orange Cup Coral) इंडो-इस्ट पैसिफिक में उत्पन्न हुयी थी किंतु अब इसे अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह, कच्छ की खाड़ी, केरल एवं लक्षद्वीप में भी देखा जा सकता है।

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