वैज्ञानिकों ने खोजी भारत में पाढ़ा की दुर्लभ प्रजाति

  • उमाशंकर मिश्र (Twitter handle : @usm)

नई दिल्ली, 26 नवंबर (इंडिया साइंस वायर) : भारतीय वैज्ञानिकों ने भारत में पाढ़ा (हॉग हिरन) की दुर्लभ उप-प्रजातियों में शामिल एक्सिसपोर्सिनसएनामिटिकस की मौजूदगी का पता लगाया है। इससे पहले तक माना जाता रहा है कि हिरन की यह संकटग्रस्त प्रजाति मध्य थाईलैंडकेपूर्वी हिस्सेतक ही सिमटी हुई है।

देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अनुवांशिक अध्ययन में मणिपुर के केयबुल लामजाओ राष्ट्रीय उद्यान में 100 पाढ़ा हिरनों की मौजूदगी का पता चला है। यह राष्ट्रीय उद्यान भारत-म्यांमार जैव विविधता का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहां पायी गई पाढ़ा की यह प्रजाति अनुवांशिक रूप से एक्सिसपोर्सिनसएनामिटिकस से मिलती-जुलती है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि इस अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया है कि एक्सिसपोर्सिनसएनामिटिकस के वितरण की पश्चिमी सीमा थाईलैंड न होकर मणिपुर है। विकास क्रम के लिहाज से अनुवांशिक विशिष्टता वाली पाढ़ा की इस आबादी की खोज काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ एस.के. गुप्ता ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “वन्यजीवों की पृथक एवं सीमित आबादी हमेशा चिंता का विषय रही है क्योंकि ऐसे में उनकी अनुवांशिक विविधता के लुप्त होने का खतरा रहता है। अनुवांशिक विविधता कम होने से बदलते पर्यावरण में जीवों की अनुकूलन क्षमता कम हो जाती है। इस संदर्भ में यह अध्ययनकाफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके आधार पर एक्सिसपोर्सिनसएनामिटिकस के संरक्षण में मदद मिल सकती है।”

अभी तक पाढ़ा की दोउप-प्रजातियों के पाये जाने की जानकारी है। ए.पी. पोर्सिनस (पश्चिमी नस्ल) के वितरण क्षेत्र में पाकिस्तान से लेकरहिमालय कीपश्चिमी तराई में स्थित पंजाब के हिस्से, पूर्व में अरुणाचल प्रदेश, नेपाल, म्यांमार और गंगा तथा ब्रह्मपुत्र के बाढ़ग्रस्त मैदान शामिल हैं। वहीं, ए.पी. एनामिटिकस (पूर्वी नस्ल) के भारत एवं चीन समेत थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम में पाये जाने की जानकारी मिलतीहै।

हॉग हिरन या पाढ़ा अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की संकटग्रस्ट प्राणियों की सूची में शामिल है। भारत में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972) की अनुसूची-1 के अंतर्गत पाढ़ा को संरक्षित किया गया है।

पाढ़ा की एक्सिसपोर्सिनसएनामिटिकस उप-प्रजाति अपने अधिकतर वितरण क्षेत्रों से सिमट रही है। वर्तमान में पाढ़ा की छोटी-सी बिखरी हुई आबादी कंबोडिया में पायी जाती है। कुछ समय पूर्व कंबोडियामेंइस प्रजाति के हिरनों की केवल 250 संख्या के बारे में पता चला था।

पाढ़ा हिरन परिवार से जुड़ा आदिम युग का स्तनपायी जीव है और प्लायोसीन तथाप्लाइस्टोसीन​ युग से इसकी मौजूदगी की जानकारी मिलती है। एक समय में यह पाकिस्तान से लेकर दक्षिण-पूर्व एशिया के विभिन्न हिस्सों में पाया जाता था।

20वीं सदी के आरंभ में पाढ़ा दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में फैला हुआ था। हाल के दशकों में आश्रय स्थलों के नष्ट होने के कारण पाढ़ा की आबादी में गिरावट हुई है। माना जा रहा है कि दक्षिण-पूर्व एशिया के अपने 35 आश्रय-स्थलों से पाढ़ा लुप्त हो चुका है।

इस अध्यन से जुड़े शोधकर्ताओं में डॉ गुप्ता के अलावा अजीत कुमार, संगीता एंगोम, भीम सिंह, मिर्जा गज़नफारुल्लाह गाज़ी, चोंगपी तुबोई और सैय्यद ऐनुल हुसैन शामिल थे। यह अध्ययन शोध पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।

यह अध्ययन साइंस ऐंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड, भारतीय वन्यजीव संस्थान और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुदान पर आधारित है। (इंडिया साइंस वायर)

 

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