ब्रो-एंट्लेरेड डीयर के दूसरे घर पर विवाद

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  • ब्रो-एंट्लेरेड डीयर (brow-antlered deer) जो वर्ष 1951 में लगभग विलुप्ति के कगार पर था, आज इनकी संख्या 260 है। अभी भी यह संकटापन्न प्रजाति है।
  • इन्हें डासिंग डीयर, एल्ड्स डीयर और थामिन भी कहा जाता है।
  • अभी यह प्रजाति केवल मणिपुर के विष्णुपुर में (लोकटक झील-केइबुल लामजाओ नेशनल पार्क-Keibul Lamjao) पाई जााती है।
  • विश्व भर से पर्यटक यहां ब्रो-एंट्लेरेड डीयर एवं पॉनी डीयर देखने के लिए आते हैं क्योंकि शेष विश्व में ये कहीं नहीं पाइंर् जाती हैं।
  • इस हिरण प्रजाति की संख्या में वृद्धि के लिए इसके लिए एक अन्य पर्यावास या दूसरा घर बनाने की मांग की जा रही है।
  • थोउबाल जिला में फुम्लेनपत झील (Phumlenpat lake) में इस हिरण का दूसरा घर बनाने की योजना बनाई जा रही है। परंतु इस योजना का बड़े पैमाने पर विरोध किया जा रहा है। खास बात यह है कि इस योजना का विरोध फुम्लेनपत झील के आसपास के गांव की महिलाएं कर रही हैं। यदि मणिपुर के हाल के वर्षों के इतिहास को देखें तो राज्य सरकार महिलाओं के विरोध की कोई योजना आगे नहीं बढ़ाती।
  • फुम्लेनपत झील के आसपास की महिलाओं का कहना है कि यह झील उनके आजीविका का मुख्य साधन है। मछली, खाने योग्य जल पौधें एवं संसाधनों की पूर्ति इसी झील से होती है। यदि हिरण के लिए इस झील को दूसरा घर बनाया जाता है तो फिर आम लोगों के लिए झील के दोहन को प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।
  • सरकार की इस तरह की योजना का विरोध करने वाले कई संगठनों का कहना है कि लोकटक झील के विपरीत फुम्लेनपत झील में न पौधा है, न घास है और न ही तैरता बायोमास (फुमडी)। ऐसे में इस झील में हिरण के लाने पर हिरण भी भूखे मर जाएंगे और गांव वालों को झील में प्रवेश की अनुमति नहीं मिलने पर वे भी भूखे मर जाएंगे। इस तरह किसी के लिए भी योजना लाभकारी नहीं है।

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