सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा पेशा विधेयक, 2018 को मंजूरी

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 22 नवंबर, 2018 को सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा प्रोफेशनलों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा एवं सेवाओं के नियमन और मानकीकरण के लिए सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा पेशा विधेयक, 2018 को मंजूरी दी है। इस विधेयक में एक भारतीय सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा परिषद और संबंधित राज्य सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा परिषदों के गठन का प्रावधान किया गया है, जो सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा पेशों के लिए एक मानक निर्धारक और सुविधाप्रदाता की भूमिका निभाएंगी।

विवरण:

  • एक केन्द्रीय एवं संबंधित राज्य सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा परिषदों का गठन किया जाएगा; सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े विषयों में 53 पेशों सहित 15 प्रमुख प्रोफेशनल श्रेणियां होंगी।
  • विधेयक में केन्द्रीय परिषद और राज्य परिषदों की संरचना, गठन, स्वरूप एवं कार्यकलापों का उल्लेख किया गया है जैसे कि नीतियां एवं मानक तैयार करना, प्रोफेशनल आचरण का नियमन, लाइव रजिस्टरों का सृजन एवं रखरखाव, कॉमन एंट्री एवं एक्जिट परीक्षाओं के लिए प्रावधान इत्यादि।
  • केन्द्रीय परिषद में 47 सदस्य होंगे जिनमें से 14 सदस्य पदेन होंगे, जो विविध एवं संबंधित भूमिकाओं और कार्यकलापों का प्रतिनिधित्व करेंगे, जबकि शेष 33 सदस्य गैर-पदेन होंगे जो मुख्यत: 15 प्रोफेशनल श्रेणियों का प्रतिनिधित्व करेंगे।
  • राज्य परिषदों की परिकल्पना केन्द्रीय परिषद को प्रतिबिंबित करने के रूप में भी की गई है, जिसमें 7 पदेन सदस्य और 21 गैर-पदेन सदस्य होंगे। गैर-पदेन सदस्यों में से ही इसके अध्यक्ष का निर्वाचन किया जाएगा।
  • केन्द्रीय एवं राज्य परिषदों के अधीनस्थ प्रोफेशनल सलाहकार निकाय विभिन्न मुद्दों पर स्वतंत्र ढंग से गौर करेंगे और विशिष्ट मान्यता प्राप्त श्रेणियों से संबंधित सिफारिशें पेश करेंगे।
  • इस विधेयक को दायरे में आने वाले किसी भी पेशे से जुड़े किसी भी अन्य मौजूदा कानून से ऊपर माना जाएगा।
  • राज्य परिषद सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा संस्थानों को मान्यता देने का कार्य करेगी।
  • कदाचार की रोकथाम के लिए विधेयक में अपराधों एवं जुर्माने से जुड़े अनुच्छेद को शामिल किया गया है।
  • विधेयक के तहत केन्द्र एवं राज्य सरकारों को भी नियम बनाने का अधिकार दिया गया है।
  • नियम-कायदे बनाने और कोई अनुसूची जोड़ने अथवा किसी अनुसूची में संशोधन करने के लिए केन्द्र सरकार को भी परिषद को निर्देश देने का अधिकार दिया गया है।

लक्ष्य:

  • अधिनियम पारित होने के 6 माह के भीतर एक अंतरिम परिषद का गठन किया जाएगा, जो केन्द्रीय परिषद का गठन होने तक दो वर्षों की अवधि के लिए प्रभार संभालेगी।
  • केन्द्र एवं राज्यों में परिषद का गठन कॉरपोरेट निकाय के रूप में किया जाएगा जिसके तहत विभिन्न स्रोतों से धनराशि प्राप्त करने का प्रावधान होगा।
  • आवश्यकता पड़ने पर परिषदों की सहायता क्रमश: केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा भी अनुदान सहायता के जरिए की जाएगी। हालांकि, यदि राज्य सरकार असमर्थता जताती है तो वैसी स्थिति में केन्द्र सरकार आरंभिक वर्षों के लिए राज्य परिषद को कुछ अनुदान जारी कर सकती है।

रोजगार सृजन की क्षमता सहित प्रमुख प्रभाव:

  • परिषद के गठन की तिथि से लेकर अगले कुछ वर्षों के दौरान सभी मौजूदा सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा प्रोफेशनल इससे जुड़ेंगे।
  • सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कार्यबल के प्रोफेशनल रुख का लाभ उठाते हुए स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में योग्य, अत्यंत कुशल और उपयुक्त रोजगारों को सृजित करने का अवसर मिलेगा।
  • आयुष्मान भारत के विजन अनुरूप उच्च गुणवत्ता वाली विविध स्वास्थ्य सेवाएं सुलभ हो पाएंगी, जिससे ‘डॉक्टर आधारित’ मॉडल के बजाय ‘सुगम्य सेवा एवं टीम आधारित’ मॉडल की ओर अग्रसर होना संभव हो पाएगा।
  • स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कार्यबल की वैश्विक मांग (किल्लत) पूरी करने का अवसर प्राप्त होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वैश्विक कार्यबल, 2030 रिपोर्ट के अनुसार स्वास्थ्य सेवा से जुड़े कार्यबल की वैश्विक मांग वर्ष 2030 तक लगभग 15 मिलियन रहने का अनुमान लगाया गया है।

व्यय अनुमान

  • प्रथम चार वर्षों में कुल लागत 95 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है। कुल बजट का लगभग 80 प्रतिशत (अर्थात 75 करोड़ रुपये) राज्यों के लिए निर्धारित किया जा रहा है,जबकि शेष राशि के जरिए 4 वर्षों तक केन्द्रीय परिषद के परिचालन के साथ-साथ केन्द्रीय एवं राज्य स्तरीय रजिस्टरों को तैयार करने में सहयोग दिया जाएगा।

लाभार्थियों की संख्या

  • यह अनुमान लगाया गया है कि सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा पेशा विधेयक, 2018 से देश में सीधे तौर पर लगभग 8-9 लाख मौजूदा सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा संबंधी प्रोफेशनल और हर वर्ष कार्यबल में बड़ी संख्या में शामिल होने वाले एवं स्वास्थ्य प्रणाली में अहम योगदान देने वाले अन्य स्नातक प्रोफेशनल लाभान्वित होंगे। हालांकि, इस विधेयक का उद्देश्य मुहैया कराई जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी प्रणाली को सुदृढ़ बनाना है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि इस विधेयक से देश की पूरी आबादी और समग्र रूप से समूचा स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र लाभान्वित होगा।

पृष्ठभूमि

  • वर्तमान स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में ऐसे अनेक सहयोगी और स्वास्थ्य सेवा प्रोफेशनल कार्यरत हैं, जो अब तक न तो चिन्हित एवं विनियमित किए गए हैं और न ही जिनका अब तक अपेक्षा के अनुरूप इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारी प्रणाली विभिन्न प्रोफेशनलों जैसे कि डॉक्टरों, नर्सों और अग्रणी पंक्ति में रहने वाले कामगारों (जैसे कि मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य सेवा सहायिका या आशा, सहायक नर्स मिडवाइफ या एएनएम) की सीमित श्रेणियों को सुदृढ़ करने पर अत्यंत केन्द्रित है। हालांकि, विगत वर्षों के दौरान बड़ी संख्या में ऐसे अन्य कामगारों की पहचान की गई है, जिनका उपयोग ग्रामीण एवं दुर्गम क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने और बेहतर करने में किया जा सकता है।
  • सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा प्रोफेशनल (एएंडएचपी) असल में स्वास्थ्य मानव संसाधन नेटवर्क का अभिन्न हिस्सा हैं और कुशल एवं दक्ष सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा प्रोफेशनल इसके साथ ही स्वास्थ्य संबंधी देखभाल की लागत कम करने एवं बेहतरीन स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की व्यापक पहुंच सुनिश्चित करने में अत्यंत मददगार साबित हो सकते हैं।
  • वैश्विक स्तर पर सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा प्रोफेशनल आरंभ में आम तौर पर न्यूनतम 3-4 वर्षों के स्नातक पूर्व (अंडरग्रैजुएट) डिग्री पाठ्यक्रम से जुड़ते हैं और वे अपने-अपने विषयों में पीएचडी स्तर की योग्यता हासिल कर सकते हैं। हालांकि, इस तरह के पाठ्यक्रमों की पेशकश करने वाले ज्यादातर भारतीय संस्थानों में मानकीकरण का अभाव होता है।
  • विश्व भर में ज्यादातर देशों में एक वैधानिक लाइसेंसिंग अथवा नियामकीय निकाय होता है, जो इस तरह के प्रोफेशनलों, विशेष कर सीधे तौर पर मरीजों की देखभाल करने वालों (जैसे कि फिजियोथेरेपिस्ट, पोषण विशेषज्ञ इत्यादि) अथवा मरीजों की देखभाल को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाले पेशों से जुड़े लोगों (लैब टेक्नोलॉजिस्ट, डॉसिमेट्रिस्ट इत्यादि) की योग्यताओं एवं सक्षमताओं को लाइसेंस देने एवं प्रमाणित करने के लिए अधिकृत होता है।
  • वैसे तो इस तरह के प्रोफेशनल कई दशकों से भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में मौजूद हैं, लेकिन व्यापक नियामकीय रूपरेखा के अभाव के साथ-साथ सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा प्रोफेशनलों (एएंडएचपी) की शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिए समुचित मानक न होने के कारण सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में व्यापक कमी महसूस की जाती रही है।
  • इसे ध्यान में रखते हुए विधेयक में एक सुदृढ़ नियामकीय रूपरेखा या व्यवस्था स्थापित करने पर विशेष जोर दिया गया है, जो सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा से जुड़े पेशों के लिए एक मानक-निर्धारक एवं नियामक की भूमिका निभाएगी।

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