विदेश जाने का अधिकार है ‘मौलिक मानवाधिकार’-सर्वोच्च न्यायालय

  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली पीठ के अनुसार किसी का विदेश यात्रा करना विवाह, परिवार इत्यादि के समान मूल मानवाधिकार है।
  • न्यायालय के मुताबिक ‘विदेश यात्रा का अधिकार एक महत्वपूर्ण मौलिक मानवाधिकार है जो किसी व्यक्ति की स्वतंत्र एवं आत्म-संकल्प रचनात्मक चरित्र को पोषित करता है, न केवल उसके स्वतंत्र कार्यों से वरन् उसके अनुभवों के विस्तारण से भी।’
  • न्यायालय का उपर्युक्त निर्णय आंध्र प्रदेश में पदस्थापित पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी) सतीष चंद्र वर्मा की याचिका पर आया है जो तमिलनाडु के कोयम्बटूर में सीआरपीएफ प्रशिक्षण केंद्र में प्रिंसिपल हैं। श्री वर्मा ने विदेश यात्रा पर जाने की अनुमति नहीं मिलने पर न्यायालय का दरबाजा खटखटाया था। उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई लंबित है। केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल एवं मद्रास उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में मेनका गांधी वाद तथा अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंट बनाम डलेस मामले में 1958 के निर्णय का हवाला दिया। यह निर्णय न्यायमूर्ति विलियम ओ. डगलस ने दिया था जिन्होंने कहा था कि विदेश जाने की स्वतंत्रता का अधिक सामाजिक मूल्य है और व्यापक महत्व का मौलिक मानवाधिकार है।

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