भारत में मारिजुआना से दवा बनाने पर परीक्षण

  • भारत में विज्ञान से जुड़े तीन प्रमुख संस्थानों ने हर्बल दवा के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने के लिए एक मंच पर आ रहे हैं। ये तीन संस्थान हैं सीएसआईआर, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) व जैव प्रौद्योगिकी विभाग। जिन हर्बल से दवा बनाने की संभावना पर विचार किया जा रहा है उनमें मारिजुआना भी शामिल है।
  • इस दिशा में पहला अध्ययन सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन ( CSIR-Indian Institute of Integrative Medicine: CSIR-IIIM) और टाटा मेमोरियल सेंटर मुंबई द्वारा आरंभ किया जाना है। ये यह शोध करेंगे कि सीएसआईआर-आईआईआईएम कैंपस जम्मू में उगाए गए मारिजुआना से तैयार दवा स्तन कैंसर के उपचार में प्रभावी हो सकता है या फिर अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (यूएसएफडीए) द्वारा मारिजुआना से निर्मित दवाओं का ‘बायो-इक्विवैलेंट’ (bio-equivalent-बनावट व प्रभाव एक जैसा) बनाया जा सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि मारिजुआना की वाणिज्यिक खेती पर प्रतिबंध है हालांकि घास के रूप में देश के कई हिस्सों में इसे उगाया जाता है। उत्तराखंड, जम्मू तथा उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में चिकित्सकीय शोध के लिए इसकी सीमित खेती की अनुमति दी गई है।
  • इस परीक्षण से जुड़े एक शोधकर्त्ता के अनुसार वे यह जानना चाहते हैं कि भांग (कैनबिस) के द्वारा जो ‘आनंद की अनुभूति’ (feelings of bliss) होती है उसे सेल्युलर स्तर पर जांचा जा सकती है कि नहीं। आनंद की यह अनुभूति कैंसर की कोशिका तक पहुंचकर उसके प्रोफाइल में परिवर्तन कर पाती है या नहीं, इसी का परीक्षण किया जा सकेगा।
  • यूएसएफडीए ने इस वर्ष मिर्गी के दो गहन रूपों लेन्नॉक्स-गैस्तौत सिंड्रोम एवं ड्रैवेत सिंड्रोम (Lennox-Gastaut syndrome and Dravet syndrome) की उपचार के लिए ‘एपिडायोलेक्स’ ( Epidiolex ) ओरल सॉल्युशन को मंजूरी दी थी।

Written by 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *